Monday, November 9, 2020

🌿 आयुर्वेद - गुंजा



गुंजा या रत्ती (Coral Bead) लता जाति की एक वनस्पति है। शिम्बी के पक जाने पर लता शुष्क हो जाती है। गुंजा के फूल सेम की तरह होते हैं। शिम्बी का आकार बहुत छोटा होता है, परन्तु प्रत्येक में 4-5 गुंजा बीज निकलते हैं अर्थात सफेद में सफेद तथा रक्त में लाल बीज निकलते हैं। अशुद्ध फल का सेवन करने से विसूचिका की भांति ही उल्टी और दस्त हो जाते हैं। इसकी जड़े भ्रमवश मुलहठी के स्थान में भी प्रयुक्त होती है।


पाश्चात्य मतानुसार गुंजा के फलों के सेवन से कोई हानि नहीं होती है। परन्तु क्षत पर लगाने से विधिवत कार्य करती है। सुश्रुत के मत से इसकी मूल गणना है।गुंजा को आंख में डालने से आंखों में जलन और पलकों में सूजन हो जाती है।


* गुणसंपादित करें -

दोनों गुंजा, वीर्यवर्द्धक (धातु को बढ़ाने वाला), बलवर्द्धक (ताकत बढ़ाने वाला), ज्वर, वात, पित्त, मुख शोष, श्वास, तृषा, आंखों के रोग, खुजली, पेट के कीड़े, कुष्ट (कोढ़) रोग को नष्ट करने वाली तथा बालों के लिए लाभकारी होती है। ये अन्यंत मधूर, पुष्टिकारक, भारी, कड़वी, वातनाशक बलदायक तथा रुधिर विकारनाशक होता है। इसके बीज वातनाशक और अति बाजीकरण होते हैं। गुन्जा से वासिकर्न भि कर सक्ते ही ग्न्जा



गुंजा यह एक ऐसा बीज है जो बहुत ही दुर्लभता सा मिल पाता है, अगर संयोग से जिसे मिल गया और वह उसका उपयोग जानता हो तो उपयोग करने वाले के जीवन में कभी किसी भी चीज का शायद ही अभाव होगा। अनेक लाभकारी गुणों से भरपूर गुंजा जो कि एक फल्ली का बीज है। इसको धुंघची, रत्ती आदि नामों से भी जाना जाता है। इसकी बेल काफी कुछ मटर की तरह ही होती है किन्तु अपेक्षाकृत मजबूत कड़क तने वाली होती है। इसे कहीं कहीं आप सुनारों की दुकानों पर देख सकते हैं। कुछ वर्ष पहले तक सुनार इसे सोना तोलने के काम में लेते थे क्योंकि इनके प्रत्येक दाने का वजन लगभग बराबर होता है करीब 120 मिलीग्राम। ये हमारे जीवन में कितनी बसी है इसका अंदाज़ा मुहावरों और लोकोक्तियों में इसके प्रयोग से लग जाता है।


गुंजा बीज तांत्रिकों के लिए तंत्र शास्त्र में जितना मशहूर है उतनी ही आयुर्वेद में भी उपयोग किया जाता है। आयुर्वेद में श्वेत (सफेद) गूंजा का अधिक प्रयोग होता है औषधि रूप में साथ ही इसके मूल का भी जो मुलैठी के समान ही स्वाद और गुण वाली होती है। इसी कारण कई लोग मुलैठी के साथ इसके मूल की भी मिलावट कर देते हैं। वहीं रक्त (लाल) गूंजा बेहद विषैली होती है और उसे खाने से उलटी दस्त पेट में मरोड़ और कभी कभी मृत्यु तक हो जाती है। आदिवासी क्षेत्रों में पशु पक्षी मारने और जंगम विष निर्माण में अब भी इसका प्रयोग होता है।


गुंजा फल्ली के बीजों की तीन प्रजातियां मिलती हैं : -



लाल गुंजा - लाल काले रंग की ये प्रजाति भी तीन तरह की मिलती है जिसमें लाल और काले रंगों मिश्रण का भी मिलता है। इस वाले गुंजा का अधिकतर तंत्र क्रियोओं में ही प्रयोग किया जाता है। ( लाल गुंजा की माला सिद्ध करके गले में धारण करने से हर कोई वशीकरण का प्रभाव में होता है।)

सफेद गुंजा - सफेद गुंजा में भी एक सिरे पर कुछ कालिमा रहती है। यह आयुर्वेद उपचार और तंत्र क्रियाओं दोनों में ही सामान रूप से प्रयोग होता है। ये लाल प्रजाति की अपेक्षा दुर्लभता से मिलता है।

काली गुंजा - काली गुंजा दुर्लभ होती है, आयुर्वेद में भी इसके प्रयोग लगभग नहीं ही मिलता हैं, लेकिन तंत्र प्रयोगों में ये बेहद महत्वपूर्ण माना जाता हैं।

इन तीन के अलावा एक अन्य प्रकार की गुंजा भी पायी जाती है जो पीली गुंजा है, ये दुर्लभतम है क्योंकि ये कोई विशिष्ट प्रजाति नहीं है किन्तु लाल और सफ़ेद प्रजातियों में कुछ आनुवंशिक विकृति होने पर उनके बीज पीले हो जाते हैं। इस कारण पीली गूंजा कभी पूर्ण पीली तो कभी कभी लालिमा या कालिमा मिश्रित पीली भी मिलती है।


मशहूर चमत्कारी गुंजा के अदभुत टोटके



* संतान की प्राप्ति -

शुभ मुहुर्त में सफेद गुंजा की जड़ लाकर गाय के दूध से धोकर, सफेद चन्दन, पुष्प, धुप दीप से पूजा करके सफेद धागे में पिरोकर। “ऐं क्षं यं दं” मंत्र के ग्यारह हजार जाप करके स्त्री या पुरूष धारण करे तो निश्चिं ही संतान सुख की प्राप्ति होती है।

* वशीकरण -

- आप जिस व्यक्ति का वशीकरण करना चाहते हों उसका अपने मन में चिंतन करते हुए मिटटी का दीपक लेकर अभिमंत्रित गुंजा के 5 दाने लेकर उन्हें शहद में डुबोकर रख दें, इस प्रयोग से शत्रु भी वशीभूत हो जाते हैं। यह प्रयोग ग्रहण काल, होली, दीवाली, पूर्णिमा, अमावस्या आदि की अर्ध रात्रि में यह प्रयोग में करने से बहुत फलदायक होता है।

- अगर गुंजा के दानों को अभिमंत्रित करके जिस किसी भी व्यक्ति के पहने हुए कपड़े या रुमाल में बांधकर रख दिया जायेगा तो वह हमेशा के लिए आपका हो जायेगा। जब तक कपड़ा खोलकर गुंजा के दाने नहीं निकलेंगे तब तक वह व्यक्ति वशीकरण के प्रभाव में रहेगा।

* जीवन भर सम्मान मिलेगा - 

शुद्ध जल (गंगाजल, कुएं का जल या अन्य तीर्थों का जल ) में गुंजा की जड़ को चंदन की भांति घिसें। अगर संभव हो तो किसी वेदपाठी ब्राह्मण या कुंवारी कन्या के हाथों से घिसवायें। यह लेप माथे पर चंदन की तरह लगायें। ऐसा व्यक्ति सभा-समारोह आदि जहां भी जायेगा, उसे वहां विशिष्ट मान सम्मान मिलेगा।

* व्यवसाय, कारोबार या नौकरी में होगी बरकत -

किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के पहले बुधवार के दिन 1 तांबे का सिक्का, 6 लाल गुंजा बीज कोरे लाल कपड़े में बांधकर सुबह 11 बजे से लेकर दोपहर 1 बजे के बीच में किसी सुनसान जगह में अपने ऊपर से 11 बार उतार कर 11 इंच गहरा गङ्ढा खोदकर उसमें दबा दें। ऐसा 11 बुधवार करें। दबाने वाली जगह हमेशा नई होनी चाहिए। इस प्रयोग से व्यवसाय कारोबार या नौकरी में बरकत होगी, घर में धन का कभी भी अभाव नहीं होगा।

* ज्ञान-बुद्धि प्रदायक -

- गुंजा-मूल को लाल या काली बकरी के दूध में घिसकर हथेलियों पर लेप करे, रगड़े कुछ दिन तक यह प्रयोग प्रतिदिन करते रहने से व्यक्ति की बुद्धि, स्मरण-शक्ति तीव्र होने लगती है, चिंतन, धारणा आदि शक्तियों में प्रखरता व तीव्रता आने लगेगी।

- यदि सफेद गुंजा के 11 या 21 दाने अभिमंत्रित करके विद्यार्थियों के कक्ष में उत्तर पूर्व में रख दिया जाये तो एकाग्रता एवं स्मरण शक्ति में गजब का लाभ होता है।

* वर-वधू की रक्षा के लिए -

विवाह के समय लाल गुंजा वर के कंगन में पिरोकर पहनायी जाती है। यह तंत्र का एक प्रयोग है, जो वर की सुरक्षा, समृद्धि, नजर-दोष निवारण एवं सुखद दांपत्य जीवन के लिए है। गुंजा की माला आभूषण के रूप में पहनी जाती है।

* विष-निवारण -

गुंजा की जड़ को गंगाजल से धोने के बाद सुखाकर रख लें। यदि कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार के जहर विष –के प्रभाव से अचेत हो रहा हो तो उसे पानी में गुंजा की जड़ को घिसकर पिलायें। इसको पानी में घिस कर पिलाने से हर प्रकार का विष जहर उतर जाता है।



* दिव्य दृष्टि की प्राप्ति -

अलौकिक तामसिक शक्तियों के दर्शन- भूत-प्रेतादि शक्तियों के दर्शन करने के लिए मजबूत हृदय वाले व्यक्ति, गुंजा मूल को रवि-पुष्य योग में या किसी भी मंगलवार के दिन- शुद्ध शहद में घिस कर आंखों में अंजन (सुरमा/काजल) की भांति लगायें तो, आपको भूत, चुडैल, प्रेतादि के दर्शन होने लगेंगे।

* गुप्त धन दर्शन - 

अंकोल या अंकोहर के बीजों के तेल में गुंजा-मूल को घिस कर आंखों पर अंजन की तरह लगायें। यह प्रयोग रवि-पुष्य योग में, रवि या मंगलवार को ही करें। इसको आंजने से पृथ्वी में गड़ा खजाना तथा आस पास रखा धन दिखाई देने लगता है।

* शत्रु में भय उत्पन्न -

गुंजा-मूल (जड़) को किसी स्त्री के मासिक स्राव रक्त में घिस कर आंखों में सुरमे की भांति लगाने से शत्रु उसकी आंखों को देखते ही भाग खड़े होने लगेंगे।

* रोग बाधा -

कुष्ठ निवारण - गुंजा मूल को अलसी के तेल में घिसकर लगाने से कुष्ठ (कोढ़) के घाव ठीक हो जाते हैं।

* अंधापन समाप्त - 

गुंजा-मूल को देशी गाय के घी में घिसकर प्रतिदिन लगाते रहने से अंधत्व कुछ ही में दूर हो जाता है।

* नौकरी में बाधा -

राहु के प्रभाव के कारण व्यवसाय या नौकरी में बाधा आ रही हो तो लाल गुंजा व सौंफ को कोरे लाल वस्त्र में बांधकर अपने कमरे में रखें।


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